Sacred Texts  Hinduism  Mahabharata  Index  Book 3 Index  Previous  Next 

Book 3 in English

The Mahabharata in Sanskrit

Book 3
Chapter 297

  1 [वै]
      स ददर्श हतान भरातॄँल लॊकपालान इव चयुतान
      युगान्ते समनुप्राप्ते शक्र परतिमगौरवान
  2 विप्रकीर्णधनुर बाणं दृष्ट्वा निहतम अर्जुनम
      भीमसेनं यमौ चॊभौ निर्विचेष्टान गतायुर अः
  3 स दीर्घम उष्णं निःश्वस्य शॊकबाष्पपरिप्लुतः
      बुद्ध्या विचिन्तयाम आस वीराः केन निपातिताः
  4 नैषां शस्त्रप्रहारॊ ऽसति पदं नेहास्ति कस्य चित
      भूतं महद इदं मन्ये भरातरॊ येन मे हताः
      एकाग्रं चिन्तयिष्यामि पीत्वा वेत्स्यामि वा जलम
  5 सयात तु दुर्यॊधनेनेदम उपांशु विहितं कृतम
      गन्धार राजरचितं सततं जिह्मबुद्धिना
  6 यस्य कार्यम अकार्यं वा समम एव भवत्य उत
      कस तस्य विश्वसेद वीरॊ दुर्मतेर अकृतात्मनः
  7 अथ वा पुरुषैर गूढैः परयॊगॊ ऽयं दुरात्मनः
      भवेद इति महाबाहुर बहुधा समचिन्तयत
  8 तस्यासीन न विषेणेदम उदकं दूषितं यथा
      मुखवर्णाः परसन्ना मे भरातॄणाम इत्य अचिन्तयत
  9 एकैकशश चौघबलान इमान पुरुषसत्तमान
      कॊ ऽनयः परतिसमासेत कालान्तकयमाद ऋते
  10 एतेनाध्यवसायेन तत तॊयम अवगाढवान
     गाहमानश च तत तॊयम अन्तरिक्षात स शुश्रुवे
 11 [यक्स]
     अहं बकः शैवलमत्स्यभक्षॊ; मया नीताः परेतवशं तवानुजाः
     तवं पञ्चमॊ भविता राजपुत्र; न चेत परश्नान पृच्छतॊ वयाकरॊषि
 12 मा तात साहसं कार्षीर मम पूर्वपरिग्रहः
     परश्नान उक्त्वा तु कौन्तेय ततः पिब हरस्व च
 13 [य]
     रुद्राणां वा वसूनां वा मरुतां वा परधानभाक
     पृच्छामि कॊ भवान देवॊ नैतच छकुनिना कृतम
 14 हिमवान पारियात्रश च विन्ध्यॊ मलय एव च
     चत्वारः पर्वताः केन पातिता भुवि तेजसा
 15 अतीव ते महत कर्मकृतं बलवतां वर
     यन न देवा न गन्धर्वा नासुरा न च राक्षसाः
     विषहेरन महायुद्धे कृतं ते तन महाद्भुतम
 16 न ते जानामि यत कार्यं नाभिजानामि काङ्क्षितम
     कौतूहलं महज जातं साध्वसं चागतं मम
 17 येनास्म्य उद्विग्नहृदयः समुत्पन्न शिरॊ जवरः
     पृच्छामि भगवंस तस्मात कॊ भवान इह तिष्ठति
 18 [यक्स]
     यक्षॊ ऽहम अस्मि भद्रं ते नास्मि पक्षी जले चरः
     मयैते निहताः सर्वे भरातरस ते महौजसः
 19 [वै]
     ततस ताम अशिवां शरुत्वा वाचं स परुषाक्षराम
     यक्षस्य बरुवतॊ राजन्न उपक्रम्य तदा सथितः
 20 विरूपाक्षं महाकायं यक्षं तालसमुच्छ्रयम
     जवलनार्कप्रतीकाशम अधृष्यं पर्वतॊपमम
 21 सेतुम आश्रित्य तिष्ठन्तं ददर्श भरतर्षभः
     मेघगन्मीरया वाचा तर्जयन्तं महाबलम
 22 [यक्स]
     इमे ते भरातरॊ राजन वार्यमाणा मयासकृत
     बलात तॊयं जिहीर्षन्तस ततॊ वै सूदिता मया
 23 न पेयम उदकं राजन पराणान इह परीप्सता
     पार्थ मा साहसं कार्षीर मम पूर्वपरिग्रहः
     परश्नान उक्त्वा तु कौन्तेय ततः पिब हरस्व च
 24 [य]
     नैवाहं कामये यक्ष तव पूर्वपरिग्रहम
     कामनैतत परशंसन्ति सन्तॊ हि पुरुषाः सदा
 25 यदात्मना सवम आत्मानं परशंसेत पुरुषः परभॊ
     यथा परज्ञं तु ते परश्नान परतिवक्ष्यामि पृच्छ माम
 26 [यक्स]
     किं सविद आदित्यम उन्नयति केच तस्याभितश चराः
     कश चैनम अस्तं नयति कस्मिंश च परतितिष्ठति
 27 [य]
     बरह्माद इत्य अमुन नयति देवास तस्याभितश चराः
     धर्मश चास्तं नयति च सत्ये च परतितिष्ठति
 28 [यक्स]
     केन सविच छरॊत्रियॊ भवति केन सविद विन्दते महत
     केन दवितीयवान भवति राजन केन च बुद्धिमान
 29 [य]
     शरुतेन शरॊत्रियॊ भवति तपसा विन्दते महत
     धृत्या दवितीयवान भवति बुद्धिमान वृद्धसेवया
 30 [यक्ष]
     किं बराह्मणानां देवत्वं कश च धर्मः सताम इव
     कश चैषां मानुषॊ भावः किम एषाम असताम इव
 31 [य]
     सवाध्याय एषां देवत्वं तप एषां सताम इव
     मरणं मानुषॊ भावः परिवादॊ ऽसताम इव
 32 [यक्स]
     किं कषत्रियाणां देवत्वं कश च धर्मः सताम इव
     कश चैषां मानुषॊ भावः किम एषाम असताम इव
 33 [य]
     इष्वस्त्रम एषां देवत्वं यज्ञ एषां सताम इव
     भयं वै मानुषॊ भावः परित्यागॊ ऽसताम इव
 34 [यक्स]
     किम एकं यज्ञियं साम किम एकं यज्ञियं यजुः
     का चैका वृश्चते यज्ञं कां यज्ञॊ नातिवर्तते
 35 [य]
     पराणॊ वै यज्ञियं साम मनॊ वै यज्ञियं यजुः
     वाग एका वृश्चते यज्ञं तां यज्ञॊ नातिवर्तते
 36 [यक्स]
     किं सविद आपततां शरेष्ठं बीजं निपततां वरम
     किं सवित परतिष्ठमानानां किं सवित परवदतां वरम
 37 [य]
     वर्षम आपततां शरेष्ठं बीजं निपततां वरम
     गावः परतिष्ठमानानां पुत्रः परवदतां वरः
 38 [यक्स]
     इन्द्रियार्थान अनुभवन बुद्धिमाँल लॊकपूजितः
     संमतः सर्वभूतानाम उच्छ्वसन कॊ न जीवति
 39 [य]
     देवतातिथिभृत्यानां पितॄणाम आत्मनश च यः
     न निर्वपति पञ्चानाम उच्छ्वसन न स जीवति
 40 [यक्स]
     किं सविद गुरुतरं भूमेः किं सविद उच्चतरं च खात
     किं सविच छीघ्रतरं वायॊः किं सविद बहुतरं नृणाम
 41 [य]
     माता गुरुतरा भूमेः पिता उच्चरतश च खात
     मनॊ शीघ्रतरं वायॊश चिन्ता बहुतरी नृणाम
 42 [यक्स]
     किं सवित सुप्तं न निमिषति किं सविज जातं न चॊपति
     कस्य सविद धृदयं नास्ति किं सविद वेगेन वर्घते
 43 [य]
     मत्स्यः सुप्तॊ न निमिषत्य अण्डं जातं न चॊपति
     अश्मनॊ हृदयं नास्ति नदीवेगेन वर्धते
 44 [यक्स]
     किं सवित परवसतॊ मित्रं किं सविन मित्रं गृहे सतः
     आतुरस्य च किं मित्रं किं सविन मित्रं मरिष्यतः
 45 [य]
     सार्थः परवसतॊ मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः
     आतुरस्य भिषन मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः
 46 [यक्स]
     किं सविद एकॊ विचरति जातः कॊ जायते पुनः
     किं सविद धिमस्य भैषज्यं किं सविद आवपनं महत
 47 [य]
     सूर्य एकॊ विचरति चन्द्रमा जायते पुनः
     अग्निर हिमस्य भैषज्यं भूमिर आपवनं महत
 48 [यक्स]
     किं सविद एकपदं धर्म्यं किं सविद एकपदं यशः
     किं सविद एकपदं सवर्ग्यं किं सविद एकपदं सुखम
 49 [य]
     दाक्ष्यम एकपदं धर्म्यं दानम एकपदं यशः
     सत्यम एकपदं सवर्ग्यं शीलम एकपदं सुखम
 50 [यक्स]
     किं सविद आत्मा मनुष्यस्य किं सविद दैवकृतः सखा
     उपजीवनं किं सविद अस्य किं सविद अस्य परायणम
 51 [य]
     पुत्र आत्मा मनुष्यस्य भार्या दैवकृतः सखा
     उपजीवनं च पर्जन्यॊ दानम अस्य परायणम
 52 [यक्स]
     धन्यानाम उत्तमं किं सविद धनानां किं सविद उत्तमम
     लाभानाम उत्तमं किं सवित किं सुखानां तथॊत्तमम
 53 [य]
     धन्यानाम उत्तमं दाक्ष्यं धनानाम उत्तमं शरुतम
     लाभानां शरेष्ठम आरॊग्यं सुखानां तुष्टिर उत्तमा
 54 [यक्स]
     कश च धर्मः परॊ लॊके कश च धर्मः सदा फलः
     किं नियम्य न शॊचन्ति कैश च संधिर न जीर्यते
 55 [य]
     आनृशंस्यं परॊ धर्मस तरयीधर्मः सदा फलः
     अनॊ यम्य न शॊचन्ति सद्भिः संधिर न जीर्यते
 56 [यक्स]
     किं नु हित्वा परियॊ भवति किं नु हित्वा न शॊचति
     किं नु हित्वार्थवान भवति किं नु हित्वा सुखी भवेत
 57 [य]
     मानं हित्वा परियॊ भवति करॊधं हित्वा न शॊचति
     कामं हित्वार्थवान भवति लॊभं हित्वा सुखू भवेत
 58 [यक्स]
     मृतं कथं सयात पुरुषः कथं राष्ट्रं मृतं भवेत
     शराधं मृतं कथं च सयात कथं यज्ञॊ मृतॊ भवेत
 59 [य]
     मृतॊ दरिद्रः पुरुषॊ मृतं राष्ट्रम अराजकम
     मृतम अश्रॊत्रियं शराद्धं मृतॊ यज्ञॊ तव अदक्षिणः
 60 [यक्स]
     का दिक किम उदकं परॊक्तं किम अन्नं पार्थ किं विषम
     शराद्धस्य कालम आख्याहि ततः पिब हरस्व च
 61 [य]
     सन्तॊ दिग जलम आकाशं गौर अन्नं परार्थना विषम
     शराद्धस्य बराह्मणः कालः कथं वा यक्ष मन्यसे
 62 [यक्स]
     वयाख्याता मे तवया परश्ना याथातथ्यं परंतप
     पुरुषं तव इदानीम आख्याहि यश च सर्वधनी नरः
 63 [य]
     दिवं सपृशति भूमिं च शब्दः पुण्यस्य कर्मणः
     यावत स शब्दॊ भवति तावत पुरुष उच्यते
 64 तुल्ये परियाप्रिये यस्य सुखदुःखे तथैव च
     अतीतानागते चॊभे स वै सर्वधनी नरः
 65 [यक्स]
     वयाख्यातः पुरुषॊ राजन यश च सर्वधनी नरः
     तस्मात तवैकॊ भरातॄणां यम इच्छसि स जीवतु
 66 [य]
     शयामॊ य एष रक्ताक्षॊ बृहच छाल इवॊद्गतः
     वयूढॊरस्कॊ महाबाहुर अङ्कुलॊ यक्ष जीवतु
 67 [यक्स]
     परियस ते भीमसेनॊ ऽयम अर्जुनॊ वः परायणम
     स कस्मान नकुलं राजन सापत्नं जीवम इच्छसि
 68 यस्य नागसहस्रेण दश संख्येन वै बलम
     तुल्यं तं भीमम उत्सृज्य नकुलं जीवम इच्छसि
 69 तथैनं मनुजाः पराहुर भीमसेनं परियं तव
     अथ केनानुभावेन सापत्नं जीवम इच्छसि
 70 यस्य बाहुबलं सर्वे पाण्डवाः समुपाश्रिताः
     अर्जुनं तम अपाहाय नकुलं जीवम इच्छसि
 71 [य]
     आनृशंस्य परॊ धर्मः परमार्थाच च मे मतम
     आनृशंस्यं चिकीर्षामि नकुलॊ यक्ष जीवतु
 72 धर्मशीलः सदा राजा इति मां मानवा विदुः
     सवधर्मान न चलिष्यामि नकुलॊ यक्ष जीवतु
 73 यथा कुन्ती तथा माद्री विशेषॊ नास्ति मे तयॊः
     मातृभ्यां समम इच्छामि नकुलॊ यक्ष जीवतु
 74 [यक्स]
     यस्य ते ऽरथाच च कामाच च आनृशंस्यं परं मतम
     अस्मात ते भरातरः सर्वे जीवन्तु भरतर्षभ
  1 [vai]
      sa dadarśa hatān bhrātṝṁl lokapālān iva cyutān
      yugānte samanuprāpte śakra pratimagauravān
  2 viprakīrṇadhanur bāṇaṃ dṛṣṭvā nihatam arjunam
      bhīmasenaṃ yamau cobhau nirviceṣṭān gatāyur aḥ
  3 sa dīrgham uṣṇaṃ niḥśvasya śokabāṣpapariplutaḥ
      buddhyā vicintayām āsa vīrāḥ kena nipātitāḥ
  4 naiṣāṃ śastraprahāro 'sti padaṃ nehāsti kasya cit
      bhūtaṃ mahad idaṃ manye bhrātaro yena me hatāḥ
      ekāgraṃ cintayiṣyāmi pītvā vetsyāmi vā jalam
  5 syāt tu duryodhanenedam upāṃśu vihitaṃ kṛtam
      gandhāra rājaracitaṃ satataṃ jihmabuddhinā
  6 yasya kāryam akāryaṃ vā samam eva bhavaty uta
      kas tasya viśvased vīro durmater akṛtātmanaḥ
  7 atha vā puruṣair gūḍhaiḥ prayogo 'yaṃ durātmanaḥ
      bhaved iti mahābāhur bahudhā samacintayat
  8 tasyāsīn na viṣeṇedam udakaṃ dūṣitaṃ yathā
      mukhavarṇāḥ prasannā me bhrātṝṇām ity acintayat
  9 ekaikaśaś caughabalān imān puruṣasattamān
      ko 'nyaḥ pratisamāseta kālāntakayamād ṛte
  10 etenādhyavasāyena tat toyam avagāḍhavān
     gāhamānaś ca tat toyam antarikṣāt sa śuśruve
 11 [yaksa]
     ahaṃ bakaḥ śaivalamatsyabhakṣo; mayā nītāḥ pretavaśaṃ tavānujāḥ
     tvaṃ pañcamo bhavitā rājaputra; na cet praśnān pṛcchato vyākaroṣi
 12 mā tāta sāhasaṃ kārṣīr mama pūrvaparigrahaḥ
     praśnān uktvā tu kaunteya tataḥ piba harasva ca
 13 [y]
     rudrāṇāṃ vā vasūnāṃ vā marutāṃ vā pradhānabhāk
     pṛcchāmi ko bhavān devo naitac chakuninā kṛtam
 14 himavān pāriyātraś ca vindhyo malaya eva ca
     catvāraḥ parvatāḥ kena pātitā bhuvi tejasā
 15 atīva te mahat karmakṛtaṃ balavatāṃ vara
     yan na devā na gandharvā nāsurā na ca rākṣasāḥ
     viṣaheran mahāyuddhe kṛtaṃ te tan mahādbhutam
 16 na te jānāmi yat kāryaṃ nābhijānāmi kāṅkṣitam
     kautūhalaṃ mahaj jātaṃ sādhvasaṃ cāgataṃ mama
 17 yenāsmy udvignahṛdayaḥ samutpanna śiro jvaraḥ
     pṛcchāmi bhagavaṃs tasmāt ko bhavān iha tiṣṭhati
 18 [yaksa]
     yakṣo 'ham asmi bhadraṃ te nāsmi pakṣī jale caraḥ
     mayaite nihatāḥ sarve bhrātaras te mahaujasaḥ
 19 [vai]
     tatas tām aśivāṃ śrutvā vācaṃ sa paruṣākṣarām
     yakṣasya bruvato rājann upakramya tadā sthitaḥ
 20 virūpākṣaṃ mahākāyaṃ yakṣaṃ tālasamucchrayam
     jvalanārkapratīkāśam adhṛṣyaṃ parvatopamam
 21 setum āśritya tiṣṭhantaṃ dadarśa bharatarṣabhaḥ
     meghaganmīrayā vācā tarjayantaṃ mahābalam
 22 [yaksa]
     ime te bhrātaro rājan vāryamāṇā mayāsakṛt
     balāt toyaṃ jihīrṣantas tato vai sūditā mayā
 23 na peyam udakaṃ rājan prāṇān iha parīpsatā
     pārtha mā sāhasaṃ kārṣīr mama pūrvaparigrahaḥ
     praśnān uktvā tu kaunteya tataḥ piba harasva ca
 24 [y]
     naivāhaṃ kāmaye yakṣa tava pūrvaparigraham
     kāmanaitat praśaṃsanti santo hi puruṣāḥ sadā
 25 yadātmanā svam ātmānaṃ praśaṃset puruṣaḥ prabho
     yathā prajñaṃ tu te praśnān prativakṣyāmi pṛccha mām
 26 [yaksa]
     kiṃ svid ādityam unnayati keca tasyābhitaś carāḥ
     kaś cainam astaṃ nayati kasmiṃś ca pratitiṣṭhati
 27 [y]
     brahmād ity amun nayati devās tasyābhitaś carāḥ
     dharmaś cāstaṃ nayati ca satye ca pratitiṣṭhati
 28 [yaksa]
     kena svic chrotriyo bhavati kena svid vindate mahat
     kena dvitīyavān bhavati rājan kena ca buddhimān
 29 [y]
     śrutena śrotriyo bhavati tapasā vindate mahat
     dhṛtyā dvitīyavān bhavati buddhimān vṛddhasevayā
 30 [yakṣa]
     kiṃ brāhmaṇānāṃ devatvaṃ kaś ca dharmaḥ satām iva
     kaś caiṣāṃ mānuṣo bhāvaḥ kim eṣām asatām iva
 31 [y]
     svādhyāya eṣāṃ devatvaṃ tapa eṣāṃ satām iva
     maraṇaṃ mānuṣo bhāvaḥ parivādo 'satām iva
 32 [yaksa]
     kiṃ kṣatriyāṇāṃ devatvaṃ kaś ca dharmaḥ satām iva
     kaś caiṣāṃ mānuṣo bhāvaḥ kim eṣām asatām iva
 33 [y]
     iṣvastram eṣāṃ devatvaṃ yajña eṣāṃ satām iva
     bhayaṃ vai mānuṣo bhāvaḥ parityāgo 'satām iva
 34 [yaksa]
     kim ekaṃ yajñiyaṃ sāma kim ekaṃ yajñiyaṃ yajuḥ
     kā caikā vṛścate yajñaṃ kāṃ yajño nātivartate
 35 [y]
     prāṇo vai yajñiyaṃ sāma mano vai yajñiyaṃ yajuḥ
     vāg ekā vṛścate yajñaṃ tāṃ yajño nātivartate
 36 [yaksa]
     kiṃ svid āpatatāṃ śreṣṭhaṃ bījaṃ nipatatāṃ varam
     kiṃ svit pratiṣṭhamānānāṃ kiṃ svit pravadatāṃ varam
 37 [y]
     varṣam āpatatāṃ śreṣṭhaṃ bījaṃ nipatatāṃ varam
     gāvaḥ pratiṣṭhamānānāṃ putraḥ pravadatāṃ varaḥ
 38 [yaksa]
     indriyārthān anubhavan buddhimāṁl lokapūjitaḥ
     saṃmataḥ sarvabhūtānām ucchvasan ko na jīvati
 39 [y]
     devatātithibhṛtyānāṃ pitṝṇām ātmanaś ca yaḥ
     na nirvapati pañcānām ucchvasan na sa jīvati
 40 [yaksa]
     kiṃ svid gurutaraṃ bhūmeḥ kiṃ svid uccataraṃ ca khāt
     kiṃ svic chīghrataraṃ vāyoḥ kiṃ svid bahutaraṃ nṛṇām
 41 [y]
     mātā gurutarā bhūmeḥ pitā uccarataś ca khāt
     mano śīghrataraṃ vāyoś cintā bahutarī nṛṇām
 42 [yaksa]
     kiṃ svit suptaṃ na nimiṣati kiṃ svij jātaṃ na copati
     kasya svid dhṛdayaṃ nāsti kiṃ svid vegena varghate
 43 [y]
     matsyaḥ supto na nimiṣaty aṇḍaṃ jātaṃ na copati
     aśmano hṛdayaṃ nāsti nadīvegena vardhate
 44 [yaksa]
     kiṃ svit pravasato mitraṃ kiṃ svin mitraṃ gṛhe sataḥ
     āturasya ca kiṃ mitraṃ kiṃ svin mitraṃ mariṣyataḥ
 45 [y]
     sārthaḥ pravasato mitraṃ bhāryā mitraṃ gṛhe sataḥ
     āturasya bhiṣan mitraṃ dānaṃ mitraṃ mariṣyataḥ
 46 [yaksa]
     kiṃ svid eko vicarati jātaḥ ko jāyate punaḥ
     kiṃ svid dhimasya bhaiṣajyaṃ kiṃ svid āvapanaṃ mahat
 47 [y]
     sūrya eko vicarati candramā jāyate punaḥ
     agnir himasya bhaiṣajyaṃ bhūmir āpavanaṃ mahat
 48 [yaksa]
     kiṃ svid ekapadaṃ dharmyaṃ kiṃ svid ekapadaṃ yaśaḥ
     kiṃ svid ekapadaṃ svargyaṃ kiṃ svid ekapadaṃ sukham
 49 [y]
     dākṣyam ekapadaṃ dharmyaṃ dānam ekapadaṃ yaśaḥ
     satyam ekapadaṃ svargyaṃ śīlam ekapadaṃ sukham
 50 [yaksa]
     kiṃ svid ātmā manuṣyasya kiṃ svid daivakṛtaḥ sakhā
     upajīvanaṃ kiṃ svid asya kiṃ svid asya parāyaṇam
 51 [y]
     putra ātmā manuṣyasya bhāryā daivakṛtaḥ sakhā
     upajīvanaṃ ca parjanyo dānam asya parāyaṇam
 52 [yaksa]
     dhanyānām uttamaṃ kiṃ svid dhanānāṃ kiṃ svid uttamam
     lābhānām uttamaṃ kiṃ svit kiṃ sukhānāṃ tathottamam
 53 [y]
     dhanyānām uttamaṃ dākṣyaṃ dhanānām uttamaṃ śrutam
     lābhānāṃ śreṣṭham ārogyaṃ sukhānāṃ tuṣṭir uttamā
 54 [yaksa]
     kaś ca dharmaḥ paro loke kaś ca dharmaḥ sadā phalaḥ
     kiṃ niyamya na śocanti kaiś ca saṃdhir na jīryate
 55 [y]
     ānṛśaṃsyaṃ paro dharmas trayīdharmaḥ sadā phalaḥ
     ano yamya na śocanti sadbhiḥ saṃdhir na jīryate
 56 [yaksa]
     kiṃ nu hitvā priyo bhavati kiṃ nu hitvā na śocati
     kiṃ nu hitvārthavān bhavati kiṃ nu hitvā sukhī bhavet
 57 [y]
     mānaṃ hitvā priyo bhavati krodhaṃ hitvā na śocati
     kāmaṃ hitvārthavān bhavati lobhaṃ hitvā sukhū bhavet
 58 [yaksa]
     mṛtaṃ kathaṃ syāt puruṣaḥ kathaṃ rāṣṭraṃ mṛtaṃ bhavet
     śrādhaṃ mṛtaṃ kathaṃ ca syāt kathaṃ yajño mṛto bhavet
 59 [y]
     mṛto daridraḥ puruṣo mṛtaṃ rāṣṭram arājakam
     mṛtam aśrotriyaṃ śrāddhaṃ mṛto yajño tv adakṣiṇaḥ
 60 [yaksa]
     kā dik kim udakaṃ proktaṃ kim annaṃ pārtha kiṃ viṣam
     śrāddhasya kālam ākhyāhi tataḥ piba harasva ca
 61 [y]
     santo dig jalam ākāśaṃ gaur annaṃ prārthanā viṣam
     śrāddhasya brāhmaṇaḥ kālaḥ kathaṃ vā yakṣa manyase
 62 [yaksa]
     vyākhyātā me tvayā praśnā yāthātathyaṃ paraṃtapa
     puruṣaṃ tv idānīm ākhyāhi yaś ca sarvadhanī naraḥ
 63 [y]
     divaṃ spṛśati bhūmiṃ ca śabdaḥ puṇyasya karmaṇaḥ
     yāvat sa śabdo bhavati tāvat puruṣa ucyate
 64 tulye priyāpriye yasya sukhaduḥkhe tathaiva ca
     atītānāgate cobhe sa vai sarvadhanī naraḥ
 65 [yaksa]
     vyākhyātaḥ puruṣo rājan yaś ca sarvadhanī naraḥ
     tasmāt tavaiko bhrātṝṇāṃ yam icchasi sa jīvatu
 66 [y]
     śyāmo ya eṣa raktākṣo bṛhac chāla ivodgataḥ
     vyūḍhorasko mahābāhur aṅkulo yakṣa jīvatu
 67 [yaksa]
     priyas te bhīmaseno 'yam arjuno vaḥ parāyaṇam
     sa kasmān nakulaṃ rājan sāpatnaṃ jīvam icchasi
 68 yasya nāgasahasreṇa daśa saṃkhyena vai balam
     tulyaṃ taṃ bhīmam utsṛjya nakulaṃ jīvam icchasi
 69 tathainaṃ manujāḥ prāhur bhīmasenaṃ priyaṃ tava
     atha kenānubhāvena sāpatnaṃ jīvam icchasi
 70 yasya bāhubalaṃ sarve pāṇḍavāḥ samupāśritāḥ
     arjunaṃ tam apāhāya nakulaṃ jīvam icchasi
 71 [y]
     ānṛśaṃsya paro dharmaḥ paramārthāc ca me matam
     ānṛśaṃsyaṃ cikīrṣāmi nakulo yakṣa jīvatu
 72 dharmaśīlaḥ sadā rājā iti māṃ mānavā viduḥ
     svadharmān na caliṣyāmi nakulo yakṣa jīvatu
 73 yathā kuntī tathā mādrī viśeṣo nāsti me tayoḥ
     mātṛbhyāṃ samam icchāmi nakulo yakṣa jīvatu
 74 [yaksa]
     yasya te 'rthāc ca kāmāc ca ānṛśaṃsyaṃ paraṃ matam
     asmāt te bhrātaraḥ sarve jīvantu bharatarṣabha


Next: Chapter 298